बिहार के वैशाली से फुलेरा पंचायत तक, सफ़र चंदन से विकास बनने का
किसी ने क्या खूब कहा है, मंज़िल तो मिल ही जाएगी भटकते ही सही, गुमनाम तो वो हुए जो घर से निकले ही नहीं, मंज़िल पाने के लिए हमें घर से निकलना ही पड़ता है और बिना भटके, बिना खोए हम अपने सपनो को पूरा नहीं कर पाएँगे। अमेज़न प्राइम पर आई मशहूर वेब सीरीज़ पंचायत 2 ने अपने दर्शकों को निराश नहीं किया। गाँव के जीवन पर आधारित कहानी और एक फौजी की ज़िंदगी ने दर्शकों का दिल एक बार फिर जीत लिया है। जिस तरह से गांव में होने वाली परेशानियों को, छोटे छोटे नोक-झोंक को हास्य के तौर पर दिखाया गया है वो सराहनीय है। इस वेब सीरीज़ को सफल बनाने में पूरी टीम ने ज़ोरदार मेहनत की है। बिहार की मिट्टी से पंचायत में किरदार निभाने वाले कई कलाकारों में से एक हैं चंदन रॉय, जिनकी मासूमियत भरे किरदार ने दर्शकों को खूब हँसया।
सरकारी नौकरी पकड़ो और दहेज लाओ
बिहार के रहने वाले चंदन पर बिहार की मानसिकता का भी प्रभाव पड़ा। बारहवीं पास कर के सरकारी नौकरी पकड़ो और दहेज लो, चंदन के लिए इस मानसिकता का सामना करना बहुत ही ज़्यादा मुश्किल था।
चंदन की माँ चाहती थी की वे दरोगा का एग्जाम दें, पर चंदन ने आकाश जितने बड़े सपनो से मोल भाव करना सही नहीं समझा, उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से जन संचार में स्नातक किया है। चंदन थिएटर बैकग्राउंड से हैं, रंगमंच में उनकी दिलचस्पी खूब रही है। पंचायत में विकास का किरदार मिलने पर उन्होंने अभिनय ना कर के विकास बन जाने का सोचा। और फिर क्या था, अभिषेक सर, प्रह्लाद चा और प्रधान जी के साथ-साथ हमारे भी प्रिय बन गए चंदन रॉय। जीवन में हम न जाने कितने सपने देखते हैं, मंज़िल दूर दिखे तो हम रास्ते बदल लेते हैं।
जनसंचार यानी की मास कम्युनिकेशन में स्नातक करने के बाद चंदन दिल्ली चले गए, जहाँ उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की, 2017 में दिल्ली से ही चंदन ने थिएटर की शुरुआत की। सफ़र में आगे बढ़ते हुए जब सपनो की नगरी कहे जाने वाले मुंबई में चंदन के कदम पड़े तो पैर थोड़ी जली, धुप ज़्यादा थी और मेहनत भी। हम शरीर से किए जाने वाले मेहनत से थकते नहीं हैं, लेकिन सफर में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जिससे दिल थक जाता है, दिल का थक जाना अच्छा नहीं होता। संघर्ष के दिनों में चंदन को कई बार अपमान का सामना करना पड़ा।
महज़ दस दिन मुंबई में बिताने के बाद रिएलिटी शो से कॉल आने और 2500 रूपये दिए जाने की बात सुन कर चंदन की ख़ुशी सातवे आसमान पर थी, दिन रात की मेहनत, लगातार काम, महिनो तक शरीर को सपनो की नगरी में गलाने के बाद चंदन को महज़ 250 रूपये मिले, रात दुखी और रोते हुए गुज़री, मायानगरी के जाल में फंसे चंदन को ये नहीं समझ आ पा रहा था की वे कहाँ आ गए हैं। शुरुआत में हमने आपको कहा था की कई बार जीवन में भटक जाना भी अच्छा होता है, क्यूंकि भटकते-भटकते ही तो वैशाली के चंदन रॉय मुंबई होते हुए फुलेरा आए और आज लाखों पंचायत प्रेमियों के दिल में हैं।
बिहार से हूँ शायद इसी लिए पंचायत में हूँ
चंदन ने करियर के शुरूआती दिनों से लेकर अब तक अपने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन बिहार की मिट्टी जिद्दी मिट्टी होती है, सपनों को तब तक नहीं छोड़ना है जब तक हम उसे पा न लें, ये हमारे अंदर जेनेटिक होता है। चंदन कहते हैं की मैं पंचायत में हूँ क्यूंकि मैं बिहार की ज़िद्दी मिटटी पर पैदा हुआ, और हमेशा आगे बढ़ते रहने की ज़िद्द अपने अंदर ज़िंदा रखी। हज़ार रूपये के लिए कुछ भी रोल कर लेना, स्क्रीन पर लाश बन जाना और दस रूपये के 3 केले खरीद लेने वाले चंदन का संघर्ष अब पूरा हो चूका है, वे कहते हैं की मैं अब किसी से आँख से आँख मिला कर मोल भाव कर सकता हूँ और ये बदलाव मेरे अंदर पंचायत से आया है।
बिहार के एक छोटे से गांव से निकल कर अपनी पहली कमाई, 3500 रूपये से अपने पिता को शर्ट पैंट का कपड़ा गिफ्ट करने वाले चंदन रॉय पर उनके माता-पिता के साथ पुरे बिहार और पंचायत परिवार को गर्व है।
पंचायत के विकास की कहानी आपको कैसी लगी, हमें कमेंट कर के ज़रूर बताएं।
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